Friday, July 31, 2020

Shiva Thandava Stotram


जटा टवी गलज्जल प्रवाह पावितस्थले
गलेवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम् ।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥ 1 ॥

जटा कटाह सम्भ्रमभ्रम न्निलिम्प निर्झरी-
-विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि ।
धगद्धगद्धग ज्ज्वलल्ललाट पट्टपावके
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥ 2 ॥

धराधरेन्द्र नन्दिनी विलासबन्धुबन्धुर
स्फुरद्दिगन्त सन्ततिं प्रमोदमानमानसे ।
कृपाकटाक्ष धोरणी निरुद्ध दुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥ 3 ॥

जटाभुजङ्ग पिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा
कदम्ब कुङ्कुमद्रव प्रलिप्तदिग्वधूमुखे ।
मदान्ध सिन्धुरस्फुरत्त्व गुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ॥ 4 ॥

सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर
प्रसूनधूलिधोरणी विभूतराङ्घ्रिपीठभूः ।
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटक
श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः ॥ 5 ॥

ललाट चत्वरज्वल द्धनञ्जयस्फुलिङ्ग भा-
निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम् ।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं
महाकपालि सम्पदे शिरो जटालमस्तु नः ॥ 6 ॥

कराल भालपट्टिका धगद्धगद्धगज्ज्वल-
धनञ्जया हुती कृत प्रचण्डपञ्चसायके ।
धराधरेन्द्रनन्दिनी कुचाग्र चित्रपत्रक-
-प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ॥ 7 ॥

नवीन मेघ मण्डली निरुद्ध दुर्धरस्फुरत्-
कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः ।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः
कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरन्धरः ॥ 8 ॥

प्रफुल्ल नील पङ्कज प्रपञ्च कालिमप्रभा-
वलम्बि कण्ठ कन्दली रुचि प्रबद्ध कन्धरम् ।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छि दान्ध कच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे ॥ 9 ॥

अगर्वसर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी
रसप्रवाहमाधुरी विजृम्भणामधुव्रतम् ।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ॥10 ॥

जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस-(mashwasa)
द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालफालहव्यवाट् ।
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः ॥ 11 ॥

दृष(drusha)द्विचित्रतकल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्-
गरिष्ठरत्न (garishtaratna) लोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः (suhyadvipaksha pakshayoh)।
तृणारविन्द चक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समप्रवृत्ति कः कदा सदाशिवं भजाम्यहम ॥ 12 ॥

कदा निलिम्पनिर्झरी निकुञ्जकोटरे वसन्
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमञ्जलिं वहन् ।
विलोल लोल लोचनो ललाम भाल लग्नकः
शिवेति मन्त्रमुच्चरन् सदा सुखी भवाम्यहम् ॥ 13 ॥

इमं हि नित्यमेव मुक्तमुत्त मोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसन्ततम् ।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिन्तनम् ॥ 14 ॥

पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं यः
शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शम्भुः ॥ 15 ॥

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